जानें कैसे भगवान गणेश बने पाताल लोक के राजा, पढ़ें रोचक कहानी
माता पार्वती और भगवान शिव के छोटे पुत्र हैं भगवान गणेश, जिन्हें माता-पिता और देवताओं के द्वारा प्रथम पूज्य होने का आशीर्वाद प्रदान किया गया. कथाओं में ऐसा उल्लेख है कि भगवान गणेश का जन्म माता पार्वती के उबटन से हुआ, और भगवान शिव द्वारा उन्हें गज का सर लगाया गया. जिससे उन्हें यह रूप मिला. इसलिए भगवान गणेश को गजानन भी कहा जाता है.
गणेश से जुड़ी कई ऐसी कथाएं हैं जो कृष्ण लीलाओं से भी मिलती जुलती हैं. इन सभी लीलाओं का वर्णन मुद्गल पुराण, गणेश पुराण और शिव पुराण में मिलता है.
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तभी वहां नागराज वासुकी ने भगवान गणेश को देखा और उपहास के भाव से भगवान गणेश से बातें करने लगे और उनके रूप का वर्णन उन्हीं के सामने करने लगे. भगवान गणेश को क्रोध आ गया, उन्होंने वासुकी के फन पर पैर रख दिया और उनके मुकुट को भी स्वयं पहन लिया.
Fवासुकी की दुर्दशा देखकर उनके बड़े भाई शेषनाग भी वहां आ गए. उन्होंने हुंकार भरते हुए कहा किसने मेरे भाई के साथ इस तरह का व्यवहार किया है. जब भगवान गणेश शेषनाग के सामने आए तो वे उन्हें पहचान गए और उनका अभिवादन करने लगे और उन्हें नाग लोक यानी पाताल का राजा घोषित कर दिया.
-एकदंत कैसे हो गए भगवान गणेश?
भगवान गणेश को हम सभी एकदंत के नाम से भी जानते हैं. इसके पीछे पुराणों में एक कथा मिलती है, जिसके अनुसार भगवान विष्णु के अवतार और भगवान शिव के परम भक्त और शिष्य परशुराम जिन्होंने 17 बार क्षत्रियों को धरती से समाप्त कर दिया था.
भगवान शिव और माता पार्वती के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत पर आए. उस समय भगवान शिव ध्यान में मग्न थे और पहरे पर स्वयं भगवान गणेश बैठे हुए थे. भगवान गणेश ने परशुराम को दर्शन करने से रोक दिया. इससे परशुराम को बहुत क्रोध आया, और उन्होंने भगवान गणेश को धक्का दे दिया.
नीचे गिरते ही भगवान गणेश को भी क्रोध आ गया. परशुराम ब्राह्मण थे तो गणेश ने उन पर प्रहार करना उचित नहीं समझा, उन्होंने परशुराम को अपनी सूंड में जकड़ लिया और चारों दिशाओं में गोल गोल घुमाने लगे. कुछ पलों के बाद उन्होंने परशुराम को छोड़ दिया.
कुछ देर तक तो परशुराम शांत मुद्रा में रहे लेकिन जब उन्हें अपने आपमान का एहसास हुआ तो उन्होंने अपने फरसे से भगवान गणेश पर वार कर दिया. वह फरसा भगवान शिव का दिया हुआ था, तो गणेश उनके वार को खली जाने नहीं देना चाहते थे,
यह सोचकर उन्होंने फरसे के उस वार को अपने एक दांत पर झेल लिया. फरसा लगते ही भगवान गणेश का दांत टूट कर गिर गया. इस कोलाहल को सुनकर भगवान शिव ध्यान मुद्रा से जाग गए और उन्होंने दोनों को शांत करवाया. तब से भगवान गणेश का एक ही दांत रह गया और वह एकदंत कहलाने लगे.
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं.